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ये कौन गुनहगार है

Jis Din Jo Socha...
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ये कौन गुनहगार है
मुझे सबसे ज़्यादा हास्यास्पद प्रष्न यही लगता है कि फलां काम किसने किया है ? क्योंकि इसे पूछने वाले को आमतौर पर अच्छे से पता होता है कि किसने क्या किया है; और तो और ये भी पता होता है कि क्यों किया है , यहाँ तक कि ये भी पता होता है कि कब, क्यों, कहाँ, किसने, कैसे की इस श्रृंखला में परिणाम  को जानते बूझते हुए भी किसी ने कर तो दिया ही है , अब ?
उदाहरण के लिए एक भारतीय परिवार में बच्चे, बूढ़े, पति पत्नी और आगे बढ़ जाइये तो चाचा,चाची,बुआ,मौसी और नातेदार मौजूद हैं तो अनुमान लगाना कहाँ मुष्किल है;प्रष्न जितना निरर्थक है जवाब उतने मुकम्मल। घर में कचरा किसने किया होगा , चीज़ें तरतीब से किसने नहीं रखी होंगी , खिलौने किसने फैलाए होंगे , चष्मा और नकली बत्तीसी कौन रखकर भूला होगा , समय पर तैयार होने में किसने देर की होगी , बाज़ार में महीने भर की अर्थव्यवस्था का बेतुकी शॉपिंग से बजट किसने बिगाड़ा होगा , घर में सामान होते हुए भी बिना पूछे डबल और तिबल ग़ैरज़रूरी सामान खरीदकर कौन लाया होगा , दफ्तर जाते समय हड़बड़ी में चाबी से लेकर लंचबॉक्स तक भूलने में और रखने में किस किस की भूमिका होगी ये कुछ ऐसे प्रष्न हैं जिन्हे बार बार पूछना , चिल्ला कर क्रोध करना कितना बेमानी और खोखला है , ये कौन प्रष्नकर्त्ता है जो समझता न होगा।
दिलचस्प बात ये है कि ये प्रष्न निरंतर पूछे जाते हैं , दोहराए जाते हैं , जवाब सुनने के पहले खीझ प्रकट की जाती है , बहुत बार खिसियाया जाता है। कुल मिलाकर इन अनुभवी वाकयों से कुछ न सीखते हुए दिन और रात घरेलू से लेकर विष्वस्तरीय चर्चाओं के मूल में इन्हीं प्रष्नों की अनवरत श्रृंखला मौजूद होती है फिर भी मासूमियत का ढोंग देखिए , कोई बाज़ नहीं आता।
अब देष दुनिया के संबंध में देख लीजिए और पुनः इन्ही सारगर्भित पूछने के लिए पूछे जाने वाले प्रष्नों पर आ जाइये। जैसे फलां घोटाला किसने किया , गुनहगार को सज़ा क्यों नहीं हुई , गुनहगार था कौन ? संसद में चर्चा क्यों नहीं होती ? चीज़ों के दाम क्यों बढ़ते हैं ? चुनावों में माहौल क्यों बदलता है , पृथ्वी का तापमान क्यों बदल रहा है , सभी अमीर रजनीकांत और अजीम प्रेमजी के समान दानी क्यों नहीं होते , भ्रष्ट देषों में लोगों की जान सस्ती क्यों होती है आदि आदि। तमाम मुद्दे और बातें प्रष्नों में बदलकर बेहयाई से उसी उत्तर की ओर संकेत करती हैं जो यह है कि किसको नहीं मालूम कि समस्या की जड़ क्या है , और कहाँ है तभी तो एक शायर चिड़चिड़ाकर कह बैठता है कि ” इस शहर का हर शख्स परेषान सा क्यों है ?
इस मामले में आजकल न्यूज़ चैनल्स पर बैठने वाली पैनल्स में बडे़ मज़ेदार लोग बैठते हैं ;वो कभी प्रष्न का सीधा , तिरछा , आड़ा , आधा अधूरा कैसा भी जवाब देते ही नहीं , वे सदा चिल्लाकर , प्रत्यारोप लगाकर , बात को घुमा फिराकर या पूछे प्रष्न को अनसुनी कर दबंगई से कन्नी काटकर साफ बच निकलते हैं।
किसी ज़माने में एक फिल्मी गाने में नायक नायिका पूछते थे; एक सवाल मैं करूँ या एक बात पूछूँ या पहले चीज़ का नाम बताओ या फिर आप यहाँ आए किसलिए ? लेकिन अब सवाल जवाब राउण्ड खेलने से क्या लाभ ? कितना सरल , सीधा , निष्कपट और समझदारी भरा युग आ चुका है जब उत्तर जानते हुए प्रष्न पूछिए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा और प्रष्न नहीं पूछें तो भी अकलमंद हैं क्योंकि फिर वही जवाब कि किसको नहीं मालूम कि कौन क्या कर रहा है।

ये कौन गुनहगार है

मुझे सबसे ज़्यादा हास्यास्पद प्रष्न यही लगता है कि फलां काम किसने किया है ? क्योंकि इसे पूछने वाले को आमतौर पर अच्छे से पता होता है कि किसने क्या किया है; और तो और ये भी पता होता है कि क्यों किया है , यहाँ तक कि ये भी पता होता है कि कब, क्यों, कहाँ, किसने, कैसे की इस श्रृंखला में परिणाम  को जानते बूझते हुए भी किसी ने कर तो दिया ही है , अब ?

उदाहरण के लिए एक भारतीय परिवार में बच्चे, बूढ़े, पति पत्नी और आगे बढ़ जाइये तो चाचा,चाची,बुआ,मौसी और नातेदार मौजूद हैं तो अनुमान लगाना कहाँ मुष्किल है;प्रष्न जितना निरर्थक है जवाब उतने मुकम्मल। घर में कचरा किसने किया होगा , चीज़ें तरतीब से किसने नहीं रखी होंगी , खिलौने किसने फैलाए होंगे , चष्मा और नकली बत्तीसी कौन रखकर भूला होगा , समय पर तैयार होने में किसने देर की होगी , बाज़ार में महीने भर की अर्थव्यवस्था का बेतुकी शॉपिंग से बजट किसने बिगाड़ा होगा , घर में सामान होते हुए भी बिना पूछे डबल और तिबल ग़ैरज़रूरी सामान खरीदकर कौन लाया होगा , दफ्तर जाते समय हड़बड़ी में चाबी से लेकर लंचबॉक्स तक भूलने में और रखने में किस किस की भूमिका होगी ये कुछ ऐसे प्रष्न हैं जिन्हे बार बार पूछना , चिल्ला कर क्रोध करना कितना बेमानी और खोखला है , ये कौन प्रष्नकर्त्ता है जो समझता न होगा।

दिलचस्प बात ये है कि ये प्रष्न निरंतर पूछे जाते हैं , दोहराए जाते हैं , जवाब सुनने के पहले खीझ प्रकट की जाती है , बहुत बार खिसियाया जाता है। कुल मिलाकर इन अनुभवी वाकयों से कुछ न सीखते हुए दिन और रात घरेलू से लेकर विष्वस्तरीय चर्चाओं के मूल में इन्हीं प्रष्नों की अनवरत श्रृंखला मौजूद होती है फिर भी मासूमियत का ढोंग देखिए , कोई बाज़ नहीं आता।

अब देष दुनिया के संबंध में देख लीजिए और पुनः इन्ही सारगर्भित पूछने के लिए पूछे जाने वाले प्रष्नों पर आ जाइये। जैसे फलां घोटाला किसने किया , गुनहगार को सज़ा क्यों नहीं हुई , गुनहगार था कौन ? संसद में चर्चा क्यों नहीं होती ? चीज़ों के दाम क्यों बढ़ते हैं ? चुनावों में माहौल क्यों बदलता है , पृथ्वी का तापमान क्यों बदल रहा है , सभी अमीर रजनीकांत और अजीम प्रेमजी के समान दानी क्यों नहीं होते , भ्रष्ट देषों में लोगों की जान सस्ती क्यों होती है आदि आदि। तमाम मुद्दे और बातें प्रष्नों में बदलकर बेहयाई से उसी उत्तर की ओर संकेत करती हैं जो यह है कि किसको नहीं मालूम कि समस्या की जड़ क्या है , और कहाँ है तभी तो एक शायर चिड़चिड़ाकर कह बैठता है कि ” इस शहर का हर शख्स परेषान सा क्यों है ?

इस मामले में आजकल न्यूज़ चैनल्स पर बैठने वाली पैनल्स में बडे़ मज़ेदार लोग बैठते हैं ;वो कभी प्रष्न का सीधा , तिरछा , आड़ा , आधा अधूरा कैसा भी जवाब देते ही नहीं , वे सदा चिल्लाकर , प्रत्यारोप लगाकर , बात को घुमा फिराकर या पूछे प्रष्न को अनसुनी कर दबंगई से कन्नी काटकर साफ बच निकलते हैं।

किसी ज़माने में एक फिल्मी गाने में नायक नायिका पूछते थे; एक सवाल मैं करूँ या एक बात पूछूँ या पहले चीज़ का नाम बताओ या फिर आप यहाँ आए किसलिए ? लेकिन अब सवाल जवाब राउण्ड खेलने से क्या लाभ ? कितना सरल , सीधा , निष्कपट और समझदारी भरा युग आ चुका है जब उत्तर जानते हुए प्रष्न पूछिए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा और प्रष्न नहीं पूछें तो भी अकलमंद हैं क्योंकि फिर वही जवाब कि किसको नहीं मालूम कि कौन क्या कर रहा है।

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